शनिवार, 8 जुलाई 2023
सोमवार, 29 मई 2023
एक बचपन का ज़माना था
एक बचपन का ज़माना था,
जहाँ खुशियों का खज़ाना था |
चाहत चाँद को पाने की,
और दिल तितली का दीवाना था |
खबर नहीं थी सुबह की,
ना शाम का ठिकाना था |
थक कर आना स्कूल से ,
पर खेलने भी जाना था |
माँ की कहानी थी ,
परियों का फसाना था |
कागज़ की नाव थी ,
हर मौसम सुहाना था |
रोने की कोई वजह न थी ,
न हँसने का बहाना था |
क्यों हम इतने बड़े हो गए,
खुशियों से क्यों दूर हो गए |
कितना अच्छा बचपन था,
वो एक बचपन का ज़माना था
मंगलवार, 26 जनवरी 2010
आग अब भी कहीं दबी सी है
हर ख़ुशी में कोई कमी सी है
हँसती आँखों में भी नमी सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नफ़्ज़ भी थमी सी है
किसको समझायेँ किसकी बात नहीं
ज़हन और दिल में फिर ठनी सी है
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई
गर्द इन पलकों पे जमी सी है
कह गए हम किससे दिल की बात
शहर में एक सनसनी सी है
हसरतें राख हो गईं लेकिन
आग अब भी कहीं दबी सी है
..................................
हँसती आँखों में भी नमी सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नफ़्ज़ भी थमी सी है
किसको समझायेँ किसकी बात नहीं
ज़हन और दिल में फिर ठनी सी है
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई
गर्द इन पलकों पे जमी सी है
कह गए हम किससे दिल की बात
शहर में एक सनसनी सी है
हसरतें राख हो गईं लेकिन
आग अब भी कहीं दबी सी है
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बेकार हमें ग़म होता है
सच ये है बेकार हमें ग़म होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है
ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम
हमसे पूछो कैसा आलम होता है
ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की
जब होता है कोई हम-दम होता है
ज़ख़्म तो हम ने इन आँखों से देखे हैं
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है
ज़हन की शाख़ों पर अशार आ जाते हैं
जब तेरी यादों का मौसम होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है
ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम
हमसे पूछो कैसा आलम होता है
ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की
जब होता है कोई हम-दम होता है
ज़ख़्म तो हम ने इन आँखों से देखे हैं
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है
ज़हन की शाख़ों पर अशार आ जाते हैं
जब तेरी यादों का मौसम होता है
अब तुम आना जो तुम्हें मुझसे मुहब्बत है कोई
अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
सिर्फ अहसान जताने के लिए मत आना
मैंने पलकों पे तमन्नाएँ सजा रखी हैं
दिल में उम्मीद की सौ शम्मे जला रखी हैं
ये हँसीं शम्मे बुझाने के लिए मत आना
प्यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़बीरें बदल सकती हैं
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना
अब तुम आना जो तुम्हें मुझसे मुहब्बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई रस्म निभाने के लिए मत आना
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सिर्फ अहसान जताने के लिए मत आना
मैंने पलकों पे तमन्नाएँ सजा रखी हैं
दिल में उम्मीद की सौ शम्मे जला रखी हैं
ये हँसीं शम्मे बुझाने के लिए मत आना
प्यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़बीरें बदल सकती हैं
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना
अब तुम आना जो तुम्हें मुझसे मुहब्बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई रस्म निभाने के लिए मत आना
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रविवार, 20 दिसंबर 2009
Abhi baki hai...
Abhi kuch sawalon ka aana Baki hai,
Haan ya na mein Jawabon ka aana baki hai,
Ai raat zara ahista chal.... Waqt mukarar hua hai,
abhi khwabon mein kisi ka milne aana baki hai.
Dil ko sukun mile aisi kuch dawa kar,
sabhi ko mile pyar aisi dua kar,
kuch hame bhi haq hai hansne muskurane ka
So le abhi ke baad mein INTEZAAR lamba Baki hai.
Haan ya na mein Jawabon ka aana baki hai,
Ai raat zara ahista chal.... Waqt mukarar hua hai,
abhi khwabon mein kisi ka milne aana baki hai.
Dil ko sukun mile aisi kuch dawa kar,
sabhi ko mile pyar aisi dua kar,
kuch hame bhi haq hai hansne muskurane ka
So le abhi ke baad mein INTEZAAR lamba Baki hai.
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किसी को वफ़ा तो किसी को सहारा नहीं मिलता..........
दूर इन गलियों में किसी का आना जाना नहीं होता ,
कभी ख़ुशी का तो कभी मेरा ठिकाना नहीं होता ,
निकलता है सूरज रोज़ उसी जगह से
पर जाने क्यों इस दिल में रौशनी का आना जाना नहीं होता ….
कहते है मोहब्बत का कोई मुकाम तीय नहीं होता,
दुनिया में इश्क वालों का अंजाम तय नहीं होता ,
तकदीर ऊपर वाला ही लिखता है सबकी
किसी को वफ़ा तो किसी को सहारा नहीं मिलता ...
....................................................... उषा निश्छल
कभी ख़ुशी का तो कभी मेरा ठिकाना नहीं होता ,
निकलता है सूरज रोज़ उसी जगह से
पर जाने क्यों इस दिल में रौशनी का आना जाना नहीं होता ….
कहते है मोहब्बत का कोई मुकाम तीय नहीं होता,
दुनिया में इश्क वालों का अंजाम तय नहीं होता ,
तकदीर ऊपर वाला ही लिखता है सबकी
किसी को वफ़ा तो किसी को सहारा नहीं मिलता ...
....................................................... उषा निश्छल
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